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पर्यावरण की बात एक छोटे से कसबे की लिए तमाम सवाल !

BEBASI
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एक छोटा सा क़स्बा है ये घाटमपुर कानपूर नगर जनपद का ! आज कुछ काम वश मै इस कसबे के अन्दर को यानि बस्ती की तरफ चला गया था ! गली थी आस पास लोग अपने अपने घरो के सामने पानी का छिडकाव कर रहे थे ! शायद मिटटी की वजग से या फिर गर्मी की वजह से जो भी हो बड़ी ही तेजी से लोग सड़क यानि खडंजा को तर कर रहे थे ! यही लोग जब घर से निकल कर कही को जाते है तो एक लीटर पानी को पंद्रह रुपये में खरीद कर पीते है ! यानि पर्यावरण की बात कर रहा हूँ ! पानी की बर्बादी ! बगैर टोटी के नालो से पानी लगातार बहत है जब तक पानी आता है ! नगर पालिका को कोई भी परवाह नहीं ! न ही नागरिको को ! इसमे सरकार क्या करे ?
इसी गली में नाली के आस पास चारो तरफ प्लास्टिक की पन्नी, थैलिया और पलास्टिक के टुकडे पड़े थे उड़ रहे थे, तो कही कही ढेर लगा था ! ऐसा लग रहा था जैसे प्लास्टिक न होकर पेड़ पौधों की पत्तिय उड़ रही हो ! कैसा अजूबा द्रश्य था ! चुनाव सर पर है ! सभी प्रत्याशी वोट मागने का काम कर रहे है ! भला हो इनका कोई भी इस समस्या का चर्चा करने वाला नहीं ! आखिर ऐसा कब तक चलेगा ! कैसे हम केवल कागजो के शेर बने रहगे ?
उधर से जब गुजरे तो कुछ लडके मोटर सायिकल से गुजरे और बड़ी ही तेजी से बहुत की कर्कश ध्वनि का हार्न बजाते हुए ! कान बंद करने पड़े ! याद आ गयी जैसे हम मुख्य चौराहे में खड़े हो ! ट्रक हो या सरकारी बस सभी तो तीब्र से तीब्र ध्वनि की होड़ करते मिल जायेगे ! सुनाने और कुछ भी कहने की क्षमता ही ख़त्म हो रही है ! कहा तक कानून काम करेगा ?
सुबह सुबह जब भी चाय के लिए जाओ तो आज कल गर्मी में भी जगह जगह अलाव जैसे प्लास्टिक और कूड़े के ढेर जलाते मिल जाते है ! कोई कुछ भी कह नहीं सकता ! कुछ भी कर नहीं सकता ! प्रदूसन तो यही से हवा में घुल कर आम आदमी के जीवन को विषमय बना रहा है ! गर्मी को बाधा रहा है ! किसका दोष ?
वही चल कर जब मुख्य सड़क पर आओ तो फिर से सुरु हो जाता है धुल का धमाका ! बारीक महीन कण तैयार बैठे है नाक कान गले और जरा सा मुह खोलते ही अन्दर जाने को ! महीन हो चूका कूड़े के कण भी अन्दर जाकर ही साँस लेते है ! आज न सही कुछ दिनों में तो बीमार होना ही है ! अब सड़क में चलाना है तो सहना है इसमे भी किसका दोष !
दूर दूर तक कही भी पेड़ पौधों का तो निसान ही नहीं ढूढे मिलाता ! मिलाता भी है तो केवल सरकारी जगह पर जो अपने ही हाल पर रो रहे है और अपने रक्षण के लिए लगातार चिल्ला रहे है ! आज कैसी हो गयी है आम आदमी की चेतना ?
थक हार कर बैठो तो फिर आ जाती है पानी की प्यास ! बोतल तो बहुत ही महगी बिकती है सो कोशिश की जाती है पन्नी का ही पानी पिला दो वो एक रुपये में मिल तो जाता है ! दूर तक सरकारी हैण्ड पम्प नजर ही नहीं आता है ! वही पन्नी जो सस्ते गंदे मोबी आयल से बनकर तैयार होता है पानी भर कर बेचा जा रहा है ! आम आदमी जिंदगी को खुद ही खा रहा है ! कभी प्याऊ होते थे लोग लगते थे अब ये सब पिछड़े ज़माने की बाते ही गयी है !
आओ सोचे किसकी किसकी और कितनी जिम्मेदारी है ?

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