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आज कुछ उत्साह सा दिख रहा है !
हल चल मची है,
कुछ लोग हड़बड़ी में इधर उधर आ-जा रहे है !
बड़े खड़े है, थोडा सा चिंतन के भाव में,
जल्दी ये करो वो करो, की चेतावनी,
बता रहे है समायाभाव में !
कुछ डाट रहे है, कुछ डाट खा रहे है,
माजरा समझ में आ नहीं रहा है,
क्यों है हर कोई हड़बड़ी में,
क्यों ऊपर वाला, नीचे वाले को डाट रहा है ?
मै थोडा देर से आया भी हूँ,
ऊपर वाले कुछ पास पास है,
उनकी व्यस्तता देख हैरान हूँ मै,
साहस जुटा नहीं पा रहा हूँ,
कुछ पूछ बता नहीं पा रहा हूँ,
ऐसा क्या हो गया है,
जो हर कोई हैरान परेशान है ?
कुछ काम बनते देख,
मेरी तरफ मुखातिब हुए और मुस्कराए!
जल्दी आना चाहिए था,
तो देर से तुम भी आये !
आज पर्यावरण दिवस है,
वो भी तुमने नहीं बतलाये !
चलो ये तो अच्छा हुआ दनकू का,
जिसकी बेटी ने उसे बताया,
उसने हमें जतलाया और ये हड़बड़ी हुई !
मेरा मुह खुला का खुला रह गया,
पर्यावरण का विभाग की आत्मा को देख,
जो खुद को ही नहीं जाता पाई,
ऐसे है लाल उनके, खुद का भी ख्याल नहीं !
बड़े वालो ने बताया,
सब मैनेज हो गया है,
एक दो स्कुलो में प्रतियोगिता करा दी जाएगी,
कही चित्र तो कही डिबेट,
कही कही खली जमीन पर,
एक आध पौधा
इधर का उधर कर दिया जायेगा !
मुझे कुछ हैरानी हुई,
आस पास देखा, फिर फुसफुसाया,
भाई साहब बस ऐसे ही,
स्कुलो में तो छुट्टी है !
अरे कौन से हजार-पाच सौ बच्चो का
मजमा तैयार करना है ?
बस कुछ लोग मिल कर दो- दो,
चार- चार कापिया लिख देगे,
चित्र बना देगे !
पुरानी देबेतो के चित्रों में से कुछ
हेर- फेर से आज की बना देगे,
कम्पूटर युग है,
कहे को चकल्लस,
सब हो गया, अभी यही तुम भी देखो !
और सच सब कुछ मैनेज हो गया,
झंडा, डंडा, कुछ पौधे,
एक मैदान में एक गढ्ढा खुदे,
जो जैसा भी था, उसने वैसे ही,
गढ़धो में इन पौधों को रोप दिया,
शहर का हर अखबार का सवाददाता,
कुछ लिख रहा था,
कैमरा मैं फ्लेश चमका रहा था,
एक मूसल के तरीके का टीवी यंत्र
लगातार काम कर रहा था,
अपनी रौ में वह ही नहीं,
हर कोई आज के दिन को महान बता रहा था !
मैंने खुद देखा था शहर का मशहूर,
पर्यावरण दिवस, अपनी आँखों से,
वहा मैंने भी की, तालिय भी बजायी,
साहब की गर्दन अभिमान से
इठलाई !
सुबह अखबारों में बहुत ही सुन्दर,
ढंग से सजा था, बहुत कुछ लिखा था,
एतिहासिक पर्यावरण दिवस मानाने,
का रुतबा दिखा था !
मेरा माथा ठनका,
देश की ये गति देख समझ,
पर्यावरण की संरक्षा,
उनकी खूबियों को,
मिडिया की पहलू को,
सवाल गूँज रहे थे,
क्या ऐसे ही देश चल रहा है,
हर कोई इसे छल रहा है,
पीड़ा है तन- मन में
ऐसे ही देश महान बन रहा है !
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