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ये घोटाले भी अजीब होते है,
एक दो नहीं कई कई आयोगों के हवाले,
जिसमे पक जाती है तमामो के निवाले,
इनमे तो कई को कई-कई बार बनाना होता है,
क्योकि वर्षो बिताना होता है II
हर बार कुछ नया बताना होता है,
कुछ भी हो सत्ता ने सम्मान दिया तो,
सत्ता की ही बजाना होता है I
तब तक जनता और विपक्ष,
सभी जाते है बदल,
हालात भी बदलते है,
नए जख्म पैदा होते है,
कभी गहरे तो कभी उथले,
और नए- नए आयोग आते है,
पुराने चले जाते है I
लोग भूल कर नए में फस जाते है,
पुराने बिसर जाते है I
देश इन आयोगों के दौर से गुजर रहा है,
आयोग अपने उम्र से गुजर रहा है,
जो हर बार बढ़ जाती, नया एक्सटेंशन लाती है,
उम्र दराज होने पर आयोग तो आयोग रहा,
आयोग के सदस्य गुजर जाते है,
सरकार है अडिग है आयोगों पर,
फिर से नए सिरे से,
नया सदस्य को बैठाती है I
प्रजातंत्र का देश है,
न्याय तो होगा ही,
उसमे भी बहुमत को तलाशा जायेगा,
सरकार ने कहा है,
खूब करो घोटाले,
जरूरत पड़ी तो एक- के नहीं,
जांच के नाम पर
कई- कई आयोगों को बिठाया जायेगा I
लेकिन ध्यान रहे,
समय न घटे,
सच से पर्दा न हटे,
सरकार हट जाये तो हट जाने दो,
आयोग अपनी जगह से न हटे I
जरूरत पड़ने पर विपक्ष में बैठेगे,
तुम्हारे लिए तो हम कुछ भी करेगे,
संसद ही नहीं जनजीवन भी नहीं चलने देगे.
बस अपनी जगह अडिग रहो,
न्याय हो या न हो,
हमेशा न्याय की ही बात कहो,
घोटालेबाज गुजरे,
या गुजरे सदस्य I
तुम आयोग हो,
एक बार आ गए हो तो
हमारा उम्र घटे न घटे,
तुम्हारी उम्र न घटने देगे I
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