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प्रजातंत्र अब थक गया है,
हार गया है,
अपनो से, अपनानेवालो से I
आज ठगा सा दो रहे पर
चिंतित सा खड़ा है,
देश की स्थिति देख
अब डर सा गया है !
अजीब सा अन्दर अन्दर डरना,
रोज रोज का जीना और मरना,
दिलासा दे दे जीवित रखना,
अभी मै हूँ मत डरना,
हर जाये जब सबकुछ
तब भी आह नहीं तुम भरना,
मै हूँ न, तुम्हारा अपना,
इस देश का अच्छा सपना !
अब तो खुद ही डर रहा हूँ,
प्रजा का क्या ख्याल करूँगा,
मुझे खुद नहीं पता,
किस दिन, कैसे, किन
हाथो से मरुगा,
लोग मुझे रोज मार रहे है,
रोज जिन्दा कर रहे है,
मेरे लिए ही कुछ जी रहे है,
कुछ मेरे से ही पूछ रहे है,
तुम्ही हो प्रजातंत्र !
तुम्ही जनता की नित
लोगो के दिल के शूल बन रहे हो,
बदतर धूल बन रहे हो,
रोटिया स्वप्न बन रही है,
बेटिया रोज लुट रही है,
बस्ती की बस्ती मिट रही है,
बखान क्या क्या हो जब,
प्रजातंत्र ही हार गया हो !
मिटा दो ऐसे तंत्र को,
जो सब लोगो का तंत्र,
बस कुछ लोगो के लिए हो,
कुछ लोगो को ही जानता हो,
कुछ लोगो को ही पालता हो,
कुछ लोगो का हीरो और
कुछ लोगो का ही खेल बन गया हो !
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